SHABDARCHAN
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नवयौवना एक बदरी ने एक दिवस प्रस्थान किया
देवराज अपने इन्द्र को झुककर के प्रणाम किया।
जाओ कहीं भी प्यारी बदरी अपना हमें पता देना
जहाँ कहीं भी बरसोगी तुम,.. हमें ज़रा बता देना।
नभ में उड़ती बदली हूँ मैं,कभी श्वेत कभी कजली हूँ मैं
कभी चूमती शीर्ष क्षितिज को, धरा के लिए पगली हूँ मैं।
चाह मेरी बस इतनी सी है,इसी बात पर हरषुगीं मैं
जहाँ खिलेंगें पुष्प प्रेम के सिर्फ़ वहीँ पर बरसूँगी मैं।’
-पी.के.आर्य
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