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नये क्षितिज की ओर

SHABDARCHAN
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‘मंगलमय और हर्षमय हो
हर कृत्य उत्कर्षमय हो,
सुख भरा प्रत्येक क्षण हो
प्रतिदिन नववर्षमय हो। ‘
सभ्य विश्व इतिहास की गणना में एक और वर्ष की वृद्धि हुई। हम सब 2015 में प्रवेशित हैं।बहुत से अधूरे स्वप्नों की खरोचें अँखियों में चुभ रही हैं, तो अनेकानेक नये संकल्प जीवन डगर पर मधुरिम स्वरलहरियों के रूप में उपस्थित हैं। काफी कुछ बदला है ; काफी कुछ जैसे का तैसा ! फिर भी उम्मीद और आशा के नवप्रभात में उपलब्धियों के पुष्प सुवासित होने को आतुर हैं।परस्पर विश्वास और सहयोग के क्षितिज पर पुरुषार्थ के पंछी नव गगन के अनंत छोरों तक उड़ आना चाहते हैं। जाते वर्ष में एक बड़ा काम हुआ भारत के एक नये सशक्त स्वरुप का अभ्युदय !अभी अपने वैश्विक परिचय और प्रभुत्व के नये अध्यायों का लिखा जाना शेष है; संभवतः यह इस वर्ष होगा।

स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार एक ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनने का अवसर प्राप्त हुआ, जो स्वतंत्र भारत में जन्मा था। सिर्फ इतना ही नहीं इस व्यक्ति के प्रधानमंत्री बनने से यह बात और अधिक सुस्पष्ट हुई कि इस देश में लोकतंत्र सिर्फ कहने भर को नहीं है उसे मूर्त रूप में देखा भी जा सकता है। नरेंद्र मोदी ने सर्वाधिक अंतिम छोर पर खड़े एक भारतीय मेहनतकश परिवार के प्रतिनिधि के रूप में यहाँ तक की यात्रा की। यह वर्ष की अतुलनीय उपलब्धियों में से एक है। कईं दशकों के बाद भारत को एक स्थिर सरकार मिली। इसके परिणामों ने समूचे विश्व में देश की दिशा और दशा दोनों को शक्ति प्रदान की। देश के युवा वर्ग की संख्या ही नहीं बढ़ी उसकी भागीदारी में भी वृद्धि हुई। मतदान प्रतिशतता में जागरूकता और उसका प्रदर्शन इस वर्ष की अन्य उपलब्धियों के रूप में याद किये जायेंगे। भविष्य का इतिहास इस कालखंड को उपलब्धियों के पटल पर रखकर मापेगा -‘मोदी पूर्व और मोदी पश्चात !’

बीते छह महीनों में देश के बाहर भी एक भारत का निर्माण हुआ है। विदेशों में आवासित स्वदेशियों में पहली बार सर गर्व से ऊँचा करके चलने का अहसास अविर्भूत हुआ जिसे मैंने स्वयं अपनी कईं विदेश यात्राओं के उपरान्त पहली बार महसूस किया।सवा सौ करोड़ भारतवंशियों में से कितने लोगों के परिचित या रिश्तेदार सत्ता में आसीन होंगे ? लेकिन लगभग प्रत्येक भारतीय में एक राष्ट्रीय स्वाभिमान की भावना के बीज अंकुरित होते हुए दिखाई दिए ;जिनके सुपरिणाम आने वाले वर्षों की आधारशिला रखेंगे।’हमारा पड़ौसी हमारा सबसे पहला शुभचिंतक है’ ,भारतीय चिंतन की ऐसी पुरातन अवधारणा है। भारत ने अपने वैभव से लेकर पराभव तक के समूचे कालखण्ड में कभी किसी भी देश पर पहले हमला नहीं किया। हमारी संस्कृति हमें शत्रुओं के प्रति भी सदाशयता की देशना देती है। भारत की समग्र सीमाओं से जुड़े सभी राष्ट्रों से हमारे संबंधों के ताने-बाने और अधिक सशक्त होंगे ;आते वर्ष में यह कामना है।जिन्हें सम्बन्ध सुधारने नहीं हैं उन्हें स्वयं सुधरने की मज़बूरी आन पड़ेगी।
जाते वर्ष में भारत दुनिया के अनेक संघर्षरत और विकास के पथ पर आरूढ़ छोटे राष्ट्रों के लिए एक नई उम्मीद बनकर उभरा है ;जिन्हें ताक़त का मतलब अमेरिका या ब्रिटेन समझ आता था। नये देशों में पनपती स्वाभिमान और स्वावलम्बन की नई भावनायें सभी के लिए कल्याणकारी साबित होंगी। भारत के प्रयासों से ब्राज़ील में स्थापित नये वैकल्पिक विश्व बैंक के अपने निहितार्थ हैं; जो निश्चित ही भारत के लिए भी शुभ रहेंगे।दशकों पहले प्रभात फेरी लगाने वाली टोलियां एक गीत गाया करती थी -‘भूखा प्यासा तेरा पड़ौसी तूने रोटी खाई तो क्या ?’ इस शुभ संकल्प अब वास्तविक मायनों में साकार होने के करीब है नेपाल,भूटान,श्री लंका,अफगानऔर मालदीव की बात छोड़िये साऊथ अफ्रीका के अनेक देशों को भारत भोज्य पदार्थों की मदद को आगे आया है। कईओं को तो यह मदद मिलनी प्रारम्भ भी हो चुकी है। यह ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ को चरितार्थ करने वाले युग का श्री गणेश हुआ है।वस्तुतः भारतीय जीवन दर्शन की यह पुरातनतम कड़ी है ,जो उसे अन्य सभी से अलग खड़ा करती है। महात्मा गांधी की 145 वीं जयंती पर देश भर में जो स्वच्छता अभियान शुरू हुआ है, उसका पूरी दुनिया में एक अच्छा सन्देश गया है।आशा है आगत वर्ष में यह सफाई गली-मोहल्लों से होती हुई दिलों दिमाग तक को स्वच्छ करने का काम करेगी। भारत और भारत का 5 हज़ार वर्ष पुराना योग एक दूसरे के पर्याय हैं। यहाँ के योगी -तपस्वियों की धाक समूचे विश्व में है।काफी लम्बे अरसे से भारत संयुक्त राष्ट्र से योग के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय दिवस घोषित करने की मांग कर रहा था ,इसे मंजूरी मिलने से समग्र रूपेण भारतीय जीवन शैली और चिंतन को स्वीकृति मिली है। इसके दूरगामी सकारात्मक परिणाम हमें देखने को मिलेंगे। क्या ही अच्छा हो कि जिस योग को अब दुनिया ने स्वीकारा है; उसे हमारे देश की नई पीढ़ी अपनी जीवन पद्धति का एक अनिवार्य अंग बनाये ताकि व्यसन और कुंठाओं में जी रहे एक बड़े वर्ग को स्वस्थ जीवन जीने की कला आ सके।

शक्ति स्वीकार्यता का प्राथमिक बिंदु है। हमारे प्रायः सभी देवी-देवताओं के हाथों में कोई न कोई आयुध अवश्य है। यह इसी बात का प्रतीक है कि जीवन रस के माधुर्य को बनाये रखने के लिए जितना स्थान क्षमा और दया का है उतना ही बल का भी। सच तो यही है कि बलवान की क्षमा ही मूल्यवान होती है। भारतीय सुरक्षा के परिप्रेक्ष्य में हमने नभ के लिए ‘तेजस’ थल के लिए ‘निर्भय’ जल के लिए ‘आई एन एस कोलकाता’ ,और ‘आई एन एस कोमार्टा’ के रूप में उल्लेखनीय उपलब्धियां अर्जित कीं हैं। हमारे सर्वोच्च मेधावान वैज्ञानिक इस दिशा में पुनश्च: मील का पत्थर साबित होंगे।यही नहीं भारत पहले प्रयास में मंगल ग्रह पर पहुँचने वाला सबसे पहला देश भी बना। फ़्रांस, जर्मनी, और कनाडा के कदम से कदम मिलाते हुए हमने अंतरिक्ष बाजार में अपनी सशक्त आमद दर्ज़ की है। जो वैज्ञानिक भारतीय प्रयासों को दोयम दर्ज़े का मानते थे, वे सब अब इसरो के डंके का शंखनाद सुन समझ रहे हैं। शीघ्र ही भारतीय विज्ञान नई उंचाईयों को छुवेगा ,आते वर्षों में हम सब गर्वीली यात्रा के साक्षी रहेंगे। प्रख्यात वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल ने जब अपनी वसीयत की थी तो भारत देश को शांति का मसीहा कहा था। इसके पीछे भगवान बुद्ध और महावीर जैसी महानतम युग पुरूषों की दृष्टि काम कर रही थी। कौन जानता था कि अल्फ्रेड की मृत्यु के इतने वर्ष उपरान्त जब शांति के लिए नोबेल देने की बारी आयेगी; तो उसके लिए भारत के ही कैलाश सत्यार्थी बाज़ी मार ले जायेंगे। आते वर्षों में हमें असंख्य नोबेल मिलें यह हर कोई भारतीय चाहेगा परन्तु जिस बाबत सत्यार्थी जी को मिला, वह अब एक विषय नहीं रहना चाहिए। मतलब सभ्य विश्व के किसी भी कोने में ऐसे बच्चे ही न रहें जिनके लिए किसी और सत्यार्थी को अभियान चलाने की आवश्यकता पड़े। बच्चे वहीँ होने चाहियें जहाँ उनका स्थान है -शिक्षालय !
गौरवान्वित भारत तेज़ी से समृद्ध भारत की ओर क़दम बढ़ा रहा है। 100 लाख करोड़ के मार्किट कैपिटल के साथ मुम्बई स्टॉक एक्सचेंज विश्व के टॉप टैन शेयर बाज़ारों में शामिल हो गया है। बीइसई ने 140 साल के इतिहास में यह मुकाम हासिल किया है। लिस्टेड कंपनियों के दृष्टिकोण से भी यह विश्व का सबसे बड़ा बाज़ार है। सिर्फ इतना ही नहीं ‘वर्ल्ड इकोनोमिक आउटलुक’ के अनुसार वर्ष 2015 में भारत जीडीपी दर में चीन के बाद दुनिया का दूसरा देश बन जायेगा। जहाँ अमेरिका की विकास दर अनुमानतः3.1 होगी वही भारत 6.4 के आंकड़े के आसपास या अधिक होगा।दुनिया का प्रभाव क्षेत्र और वर्चस्व स्थानांतरित हो रहा है। भारत के समक्ष अनेक ऐसे अवसर होंगे जब अपनी सार्थकता को सिद्ध कर सकते हैं। हमारी नेतृत्व क्षमता के लिए भी यह वर्ष नईं परीक्षाओं का समय होगा।

पाखंडी धर्माधिकारियों की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। अनेक जाते वर्ष में बेनकाब हुए कईओं की बारी इस साल आयेगी। आप साधारण समाज में कोई काम करें, तो किसी को उल्लू बनाकर अपना उल्लू साध भी सकते हैं। यह तो परमात्मा की तिज़ारत है उसके निज़ाम में खोटे सिक्के स्वतः ही चलन से बाहर हो जायेंगे।विज्ञान और शिक्षा के प्रभुत्व वाले युग में पुरानी कपोल कल्पित बातों के स्वाहा का समय आ गया है। चोर की सीढ़ी पकड़ने वाला भी चोर होता है। जिन मीडिया चैनलों ने मोटी-मोटी रकमें लेकर बहुत से पाखंडियों को बाबा बनाया है ;उनकी भी जवाबदेही तय होनी चाहिए।

देश एक नए क्षितिज को स्पर्श कर रहा है यह सुखकारी है लेकिन भारत के सम्मुख अभी चुनौतियों और समस्याओं के अनेक पहाड़ विद्यमान हैं। आने वाली पीढ़ियां इन्हीं पहाड़ों पर से विजय यात्रा की झाँकियों को देख सकें ;इसके लिए अनेक लक्ष्य भेदने शेष हैं। आंकड़ों की मानें तो भारत में हर दूसरा बच्चा कुपोषित है। लगभग 23 करोड़ लोग रोज़ाना भूखे सोते हैं। हज़ारों टन खाद्यान्नों को सड़ने से बचाकर हम ज़रूरतमंदों की मदद कर सकते हैं।एकतरफ हमारे पास भरपूर ऊर्जा मौजूद है जबकि दूसरी तरफ हमारे 25 फीसदी से अधिक गांवों में बिजली नदारद है। वहां हफ्ते-हफ्ते भर बिजली नहीं आती। भारत 20 प्रतिशत कोयला ,75 से 80 प्रतिशत कच्चा तेल ,और 40 से 50 प्रतिशत गैस का आयत करता है। सर्वसुलभ ऊर्जा के उत्पादन में वृद्धि करके और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाकर हम आत्मनिर्भरता के पथ पर अग्रसर हो सकते हैं। भारत में 15 से 20 फीसदी युवा ही इंटर तक की शिक्षा ले पाते हैं इसको उच्चतम स्तर तक ले जाना होगा। महिलाओं को एक सभ्य और समर्थ वातावरण में प्रगति की राह दिखानी होगी। पिछड़े और कमज़ोर तबकों को बराबरी की पाँत में लाना होगा। अपराधियों को सीखचों के पीछे और रिवायतों को देहरी से बाहर करके ही हम सच्चे और अच्छे भारत के नागरिक कहलाने के अधिकारी होंगे। प्रभु करे यह आते वर्ष में सिद्ध हो ! अस्तु !

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