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अध्यात्म की छाया है योग

SHABDARCHAN
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भारतीय गौरव को समूचे विश्व में प्रतिष्ठित करने में यहाँ के साधु -सन्यासियों और आध्यात्मिक विभूतियों का बड़ा हाथ रहा है। योग का सीधा सम्बन्ध आध्यात्मिक गतिविधियों और धार्मिक दर्शन से रहा है अतः शारीरिक विकास के साथ -साथ मानसिक स्वस्थ्य के लिए भी योग सभी को पसंद आया। स्वामी विवेकानंद ने अपने अमेरिकी प्रवास में भारतीय योग का खूब प्रचार-प्रसार किया। स्वामी विवेकानंद ने योग के लिए एक नए शब्द के चलन को बढ़ावा दिया वो था -कर्मयोग। उन्होंने कर्म की महत्ता पर बल दिया। यह युवाओं को खूब भाया। आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती योग के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने आर्य समाज की मुख्य गतिविधियों में योग को अपनाने पर बल दिया। आर्य समाज की एक विशेष इकाई ;’आर्य वीर दल’ के प्रायः समस्त कार्यकलाप योग साधना से ही जुड़े हैं। एक अन्य आध्यात्मिक विभूति परमहंस योगानंद ने अपनी आत्मकथा ‘योगी कथामृत’ में योग द्वारा उनके जीवन के रूपांतरण का सविस्तार वर्णन किया है। योग के प्रभाव को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी स्वीकारते थे। उन्होंने व्यायाम -सदाचार और भोजन के बारे में नियंत्रण सम्बन्धी उपाय योग के माध्यम से ही सीखे थे। इसका वर्णन उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग ‘में कईं स्थानों पर किया है। यही नहीं बकरी के दूध में औषधीय गुण होने और उसके सेवन से स्वस्थ्य लाभ की प्रेरणा उन्हें मुनि पतंजलि की ‘चरक संहिता’ से ही मिली थी।गांधी जी ने गीता के ‘अनाशक्ति योग’ पर एक टीका भी लिखी जिसे उन्होंने कौसानी के सुरम्य वातावरण में रहकर लिखा था।

राष्ट्रीय कवि सुमित्रानंदन पंत ने एक बार ओशो से सवाल किया समूचे भारतीय गौरव को प्रतिपादित करने के लिए यदि श्री राम या मुनि पतंजलि में से किसी एक का चयन करना पड़े ;तो आप किसे चुनेंगे ? ओशो का जवाब था श्री राम के चरित्र को श्री कृष्ण में समाहित किया जा सकता है। परन्तु मुनि पतंजलि की विश्व को योग के रूप में मौलिक देन है। उनके बिना भारतीय गौरव की यात्रा पूर्ण नहीं हो सकती। अनुभवी योगियों की मान्यता है कि योगदर्शन के अनुरूप अपने जीवन का निर्वाह करने वाला मनुष्य मोक्ष तक प्राप्त कर सकता है। यदि पूर्ण साधन उपलब्ध न भी हो सकें तो भी योग दर्शन का सिर्फ एक अंग ही स्वीकारने भर से मनुष्य सुखी और स्वस्थ जीवन जी सकता है।

प्रवीणता चाहे विचारों की हो या शारीरिक क्षमता की अपना महत्त्व दर्शाती अवश्य है। देश के इतिहास में अनेक मोड़ ऐसे आये जब यहाँ की सभ्यता और संस्कृति पर कुठाराघात हुआ लेकिन शाश्वत मूल्य सदैव जीवंत बने रहते हैं। योग के साथ भी ऐसा ही हुआ। अपने अलग- अलग स्वरूपों में योग विद्द्या गति करती रही। बहुत सी संस्थाएं अपने अपने स्तर पर योग के संवर्धन में सक्रिय रही। कुछ ऐसे महान व्यक्तियों को हम भुला नहीं सकते जिन्होंने योग को आगे बढ़ाने में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया ऐसी ही एक विभूति थे बेल्लूर कृष्णमचारी सुन्दरराज अयंगार। जो बी के एस अयंगार के नाम से अधिक प्रसिद्द हुए। उनका जन्म 14 दिसंबर 1918 को कर्नाटक राज्य के कोलार जनपद के बेल्लूर ग्राम में हुआ। अत्यंत गरीब परिवार में जन्मे अयंगार ने शिक्षक के रूप में अपना कैरियर शुरू किया। बाद में उन्होंने अपना पूरा जीवन योग को ही समर्पित कर दिया। उन्होंने योग के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित किये। उनकी विशेष शैली को ‘अयंगार योगा’ के नाम से जाना जाता है। बी के एस अयंगार योग को अंतर्राष्ट्रीय ख्याति तक ले गए। उन्हें योग के क्षेत्र में पहला इंटरनेशनल ब्रांड अम्बेसडर बनने का गौरव अर्जित है। श्री अयंगार को सन 2002 में भारत सरकार द्वारा साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में ‘पद्म भूषण’ से तथा 2014 में ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया गया। 20 अगस्त 2014 को उनका निधन हो गया।

बी.के.एस. अयंगार के बाद आधुनिक भारत में योग को लोकप्रिय बनाने में एक नाम स्वतः ही सभी की ज़ुबान पर आ जाता है – स्वामी रामदेव। स्वामी रामदेव भारतीय योग-गुरु हैं, जिन्हें अधिकांश लोग बाबा रामदेव के नाम से जानते हैं। उन्होंने योगासन व प्राणायाम योग के क्षेत्र में योगदान दिया है। रामदेव जगह-जगह स्वयं जाकर योग-शिविरों का आयोजन करते हैं, जिनमें प्राय: हर सम्प्रदाय के लोग आते हैं। रामदेव अब तक देश-विदेश के करोड़ों लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से योग सिखा चुके हैं।भारत में हरियाणा राज्य के महेन्द्रगढ़ जनपद स्थित अली सैयदपुर नामक गाँव में 11 जनवरी 1971 को गुलाबो देवी एवं रामनिवास यादव के घर जन्मे रामदेव का वास्तविक नाम रामकृष्ण है। समीपवर्ती गाँव शहजादपुर के सरकारी स्कूल से आठवीं कक्षा तक पढाई पूरी करने के बाद रामकृष्ण ने खानपुर गाँव के एक गुरुकुल में आचार्य प्रद्युम्न व योगाचार्य बल्देव जी से संस्कृत व योग की शिक्षा ली। योग गुरु बाबा रामदेव ने युवा अवस्था में ही सन्यास लेने का संकल्प किया और रामकृष्ण, बाबा रामदेव के नये रूप में लोकप्रिय हो गए।स्वामी रामदेव योग, प्राणायाम, अध्यात्म आदि के साथ-साथ वैदिक शिक्षा व आयुर्वेद का भी प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।स्वामी रामदेव के अलावा एक नाम और है जिन्होंने योग को प्रतिष्ठा दिलाने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया -भारत भूषण -योगी जी।एक भारतीय योग शिक्षक हैं। गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए उन्होंने पूर्णत:सन्यस्थ भाव से देश-विदेश में योग को प्रचारित और प्रसारित करने का उल्लेखनीय कार्य किया। भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री की उपाधि से अलंकृत किया। योग एवं शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रपति से पद्म श्री सम्मान प्राप्त करने वाले वे प्रथम भारतीय हैं।
योग के महत्त्व को समझते हुए भारत और भारत के बाहर अनेक व्यक्ति और संस्थाएं अपने अपने स्तर पर विभिन्न कार्यक्रमों और कार्यशालाओं का आयोजन करते रहते हैं। उत्तराखंड प्रान्त के ऋषिकेश में पिछले 16 वर्षों से ऐसा ही एक महत्त्वपूर्ण आयोजन होता आ रहा है। परमार्थ निकेतन के प्रमुख स्वामी चिदानंद की देखरेख में ‘इंटरनेशनल योगा फेस्टिवल’ का प्रतिवर्ष आयोजन किया जाता है।

योग कोई धर्म है या दर्शन ,व्यायाम है या सीखे जाने योग्य कोई कला ? देश और दुनिया के असंख्य लोग इन सवालों से दो चार हो ही रहे थे कि भारतीय योग ने विश्व क्षितिज पर एक नयी छलांग लगायी। वर्षों की मेहनत रंग लायी और अंततः योग को यू एन ओ द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृति मिल ही गयी। 21 जून को प्रतिवर्ष अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाये जाने की घोषणा की गयी। जिसकी पहल भारत के प्रधानमंत्री ने 27 सितम्बर 2014 को यू एन ओ में अपने भाषण में रखकर की। जिसके बाद 21 जून को “अंतरराष्ट्रीय योग दिवस” घोषित किया गया। 11 दिसम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र में 193 सदस्यों द्वारा 21 जून को “अंतरराष्ट्रीय योग दिवस” को मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली। प्रधानमंत्री मोदी के इस प्रस्ताव को 90 दिन के अंदर पूर्ण बहुमत से पारित किया गया, जो संयुक्त राष्ट्र संध में किसी दिवस प्रस्ताव के लिए सबसे कम समय है। भारत ने जब यह प्रस्ताव पेश किया तब 130 देश हमारे साथ आ गए थे और जब ये पारित हो गया है तो भारत के साथ 175 देश हैं। ये दिखाता है कि इस मामले पर योग के साथ आने की सबकी बड़ी इच्छा दबी पड़ी थी।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में योग को दुनिया के नाम भारत का उपहार कहा था उन्होंने योग को जलवायु परिवर्तन के हल की तरह भी पेश किया था।लेकिन जहां मोदी का योग प्रकृति के साथ लय बिठाने वाली जीवनशैली की बात करता है और उसी के ज़रिए जलवायु परिवर्तन की समस्या पर लगाम कसने की बात करता है, वहीं दुनिया के कई हिस्सों में ये लेमन पैंट्स और चमकदार स्टूडियोज़ में चल रहा अरबों डॉलर का उद्योग भी है। न्यूयॉर्क शहर के बीचोबीच बने गणेश मंदिर में योग कक्षाएं बिल्कुल पारंपरिक अंदाज़ में चलती हैं। ‘हिंदू अमेरिकन फ़ाउंडेशन’ की शीतल शाह का कहना है कि बदलते मौसम को रोकने में वही योग कामयाब हो सकता है जिसकी जड़ें हिंदू दर्शन से निकलती हों
कोई भी विद्या जब अनुभव प्रक्रिया से गुजरती है तो स्वभाव बन जाती है। योग के साथ भी ऐसा ही हुआ। योग करने वाले देश और दुनिया के अनेक गणमान्य व्यक्तियों ने अपने स्वास्थ्य के स्तर पर आशाजनक और बेहतर परिणामों को महसूस किया। सारी दुनिया हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ऊर्जा और सामर्थ्य शक्ति की कायल है। जब अमेरिकी राष्ट्रपति भारत आये थे तब उन्होंने इस बात की प्रशंसा भी की थी कि नरेंद्र मोदी उनसे कम सोते हैं और सदा तारोताज़ा दिखते हैं। अपनी ताज़गी और सामर्थ्य का समूचा श्रेय मोदी जी योग को देते हैं। वे अपने व्यस्ततम समय में से भी योग के लिए कुछ वक़्त निकाल ही लेते हैं।
योग आज अपने महत्त्व और उपयोगिता के कारण दुनिया में फ़ैल रहा है। लेकिन भारत में अभी भी जिस पैमाने पर योग का चलन युवाओं में होना चाहिए उसकी कमी अखरती है। स्कूल -कॉलेजों को योग के प्रचार प्रसार और प्रशिक्षण में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देना चाहिए। तभी भारत का स्वप्न साकार होगा। मुनि पतंजलि का स्वप्न साकार हो सकेगा।
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